शास्त्रों के विषय में शंका समाधान ( सिर्फ जिज्ञासु और प्रबुध्दजनों के लिए )
हमारे हिन्दू धर्म में चार प्रकार के ''धर्मग्रन्थ ''उपलब्ध है :
१- श्रुति - वेद , उपनिषद् और गीता !
२- स्मृति - वशिष्ठ स्मृति , मनुस्मृति आदि !!
३- पुराण आदि - भागवत पुराण आदि !!!
४- तंत्र आदि शास्त्र !!!
इसमे ''श्रुति '' को ''प्रामाण्य '' ग्रन्थ माना जाता है , जो भी धर्म या अध्यात्म शास्त्र के मूल सिद्धांत और गूढ़ से गूढ़ ज्ञान है , इसी ''धर्मशास्त्र '' में है ! यही हिन्दू धर्म का मूल आधार है !!
अगर किसी को भी आत्मा, प्रकृति और परमात्मा के विषय में कोई शंका समाधान
या जिज्ञासा है , जो जिज्ञासु और बुध्दिप्रधान है , उन्हें इन्ही शास्त्रों
में समाधान मिलेगा !!! ये शास्त्र अन्य सभी शास्त्रों के लिए ''प्रमाण ''
माने गए है यानी अगर अन्य शास्त्र के विषय में जो भी शंका या प्रश्न होगा ,
उसके लिए प्रमाण के रूप में इन्ही धर्म ग्रंथो का आधार लिया जाता है !!
'' श्रुति '' ज्ञान अकाट्य और अपरिवर्तनशील है !! ये ज्ञान 'कंठस्थ '' होता है !
२- स्मृति -- समाज की तत्कालीन प्रकृति और परिस्थिति को देखते हुए उस समय
समाज में विराजमान ऋषि मुनियों ने जो ''श्रुति '' पर आधारित जनकल्याण के
लिए समाज को धर्म अनुरूप व्यवस्था में नियमबद्ध किया और वह धर्माचरण के
लिए जो शास्त्र बने , वे ''स्मृति '' कहलाये !!
''स्मृति '' ज्ञान
समय और परिस्थिति के अनुरूप ''परिवर्तनशील '' होते है , लेकिन श्रुति
प्रमाणित होने से अकाट्य होते है ..तत्कालीन समय और परिस्थिति में वे नियम
और शास्त्र मान्य होते है लेकिन सदैव स्थायी नहीं माने जाते !! इसमे
परिवर्तन किया जा सकता है और कभी उस समय सत्ताधीश उसे अपने हित में ''
परिवर्तित ''कर उसमे मिलावट भी कर सकते है और किया भी गया है ..
जैसे आज के समय में वर्णाश्रम व्यवस्था एक औपचारिकता है , उसे पूर्णरूप से व्यवहारिकता में नहीं लाया जा सकता !!
आज के अनुरूप ही ही उसकी अलग व्याख्या बन जाएगी !!
तर्क- वितर्क और वाद विवाद इसी क्षेत्र में है !!
३- पुराण आदि - समाज में सभी प्रकार के व्यक्ति बुध्दिप्रधान नहीं होते !!
वे सिध्दांत को सीधे समझ नहीं पाते ! इसलिए उन्हें कथानक अथवा दृष्टान्त
के माध्यम से ''श्रुति '' के मूल सिध्दांत को समझाने का प्रयास किया जाता
है !! ये ह्रदय प्रधान लोगो के लिए बने है ! बुध्दिप्रधान लोगो को इन
शास्त्रों में शंका होती है , सो स्वाभाविक है ..लेकिन बुध्दिमान लोग इन
शास्त्र के ''भावार्थ '' को समझने का ही प्रयास करते है !!
४-
तंत्र मन्त्र आदि - इन शास्त्रों की रचना मध्यकाल में सिद्ध महापुरुषों
द्वारा की गई ! ये भी अनुभव सिध्द ग्रन्थ है और गूढ़ होने के कारण इस
शास्त्र की सभी बाते सामान्य लोगो के समझ से परे भी हो जाती है .. लेकिन ये
शास्त्र सिर्फ ''साधना'' द्वारा ही समझ में आ सकते है !
इस
प्रकार से शास्त्रों के बारें में जानकारी रखकर तब उसके विषय में अपना
मंतव्य रखना चाहिए और उसी तरह ज्ञान भी ग्रहण करना चाहिए !!!
४- तंत्रमंत्र आदि शास्त्र : इनका
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