गायत्री मन्त्र का वैज्ञानिक आधार
गायत्री मन्त्र का अर्थ है उस परम सत्ता की महानता की स्तुति जिसने इस
ब्रह्माण्ड को रचा है । यह मन्त्र उस ईश्वरीय सत्ता की स्तुति है जो इस
संसार में ज्ञान और और जीवन का स्त्रोत है, जो अँधेरे से प्रकाश का पथ
दिखाती है । गायत्री मंत्र लोकप्रिय यूनिवर्सल मंत्र के रूप में जाना जाता
है. के रूप में मंत्र किसी भी धर्म या एक देश के लिए नहीं है, यह पूरे
ब्रह्मांड के अंतर्गत आता है। यह अज्ञान
को हटा कर ज्ञान प्राप्ति की स्तुति है । मन्त्र विज्ञान के ज्ञाता अच्छी
तरह से जानते हैं कि शब्द, मुख के विभिन्न अंगों जैसे जिह्वा, गला, दांत,
होठ और जिह्वा के मूलाधार की सहायता से उच्चारित होते हैं । शब्द उच्चारण
के समय मुख की सूक्ष्म ग्रंथियों और तंत्रिकाओं में खिंचाव उत्पन्न होता है
जो शरीर के विभिन्न अंगों से जुडी हुई हैं । योगी इस बात को भली प्रकार से
जानते हैं कि मानव शरीर में संकड़ों दृश्य -अदृश्य ग्रंथियां होती है
जिनमे अलग अलग प्रकार की अपरिमित उर्जा छिपी है । अतः मुख से उच्चारित हर
अच्छे और बुरा शब्द का प्रभाव अपने ही शरीर पर पड़ता है । पवित्र वैदिक
मंत्रो को मनुष्य के आत्मोत्थान के लिए इन्ही नाड़ियों पर पड़ने वाले
प्रभाव के अनुसार रचा गया है । आर्य समाज का प्रचलित गायत्री मन्त्र है ” ॐ
भूर्भुव: स्व:, तत्सवितुर्वरेण्यम् भर्गो देवस्य धीमहि, धियो यो न:
प्रचोदयात्”.
शरीर में षट्चक्र हैं जो सात उर्जा बिंदु हैं -
मूलाधार चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र, मणिपूर चक्र, अनाहद चक्र, विशुद्ध चक्र,
आज्ञा चक्र एवं सहस्त्रार चक्र ये सभी सुषुम्ना नाड़ी से जुड़े हुए है ।
गायत्री मन्त्र में २४ अक्षर हैं जो शरीर की २४ अलग अलग ग्रंथियों को
प्रभावित करते हैं और व्यक्ति का दिव्य प्रकाश से एकाकार होता है । गायत्री
मन्त्र के उच्चारण से मानव शरीर के २४ बिन्दुओं पर एक सितार का सा कम्पन
होता है जिनसे उत्पन्न ध्वनी तरंगे ब्रह्माण्ड में जाकर पुनः हमारे शरीर
में लौटती है जिसका सुप्रभाव और अनुभूति दिव्य व अलौकिक है। ॐ की शब्द
ध्वनी को ब्रह्म माना गया है । ॐ के उच्च्यारण की ध्वनी तरंगे संसार को,
एवं ३ अन्य तरंगे सत, रज और तमोगुण क्रमशः ह्रीं श्रीं और क्लीं पर अपना
प्रभाव डालती है इसके बाद इन तरंगों की कई गूढ़ शाखाये और उपशाखाएँ है
जिन्हें बीज-मन्त्र कहते है ।
गायत्री मन्त्र के २४ अक्षरों का
संयोजन और रचना सकारात्मक उर्जा और परम प्रभु को मानव शरीर से जोड़ने और
आत्मा की शुद्धि और बल के लिए रचा गया है । गायत्री मन्त्र से निकली तरंगे
ब्रह्माण्ड में जाकर बहुत से दिव्य और शक्तिशाली अणुओं और तत्वों को
आकर्षित करके जोड़ देती हैं और फिर पुनः अपने उदगम पे लौट आती है जिससे
मानव शरीर दिव्यता और परलौकिक सुख से भर जाता है । मन्त्र इस प्रकार
ब्रह्माण्ड और मानव के मन को शुद्ध करते हैं। दिव्य गायत्री मन्त्र की
वैदिक स्वर रचना के प्रभाव से जीवन में स्थायी सुख मिलता है और संसार में
असुरी शक्तियों का विनाश होने लगता है । गायत्री मन्त्र जाप से ब्रह्म
ज्ञान की प्राप्ति होती है । गायत्री मन्त्र से जब आध्यात्मिक और आतंरिक
शक्तियों का संवर्धन होता है तो जीवन की समस्याए सुलझने लगती है वह सरल
होने लगता है । हमारे शरीर में सात चक्र और 72000 नाड़ियाँ है, हर एक नाडी
मुख से जुडी हुई है और मुख से निकला हुआ हर शब्द इन नाड़ियों पर प्रभाव
डालता है । अतः आइये हम सब मिलकर वैदिक मंत्रो का उच्चारण करें .. उन्हें
समझें और वेद विज्ञान को जाने । भारत वर्ष का नव-उत्कर्ष सुनिश्चित करें ।
गायत्री मंत्र ऋग्वेद के छंद 'तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो
यो नः प्रचोदयात्' 3.62.10 और यजुर्वेद के मंत्र ॐ भूर्भुवः स्वः से मिलकर
बना है।
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